Wednesday, June 17, 2020

चीन, आत्मनिर्भरता, स्वदेशी, बहिष्कार, राजनीति, भारत

जब भी कोई त्यौहार आता है या चाइना के साथ द्वन्द जैसी स्थिति होती है या फिर हाल फिलहाल चाइना से उद्गम हुई कोरोना जैसी आपदा हो, हम सभी लोग बॉयकॉट चाइना का राग आलपना शुरू कर देते हैं। 

निश्चित, हम सब की देश भक्ति की भावनाओं पर कोई संदेह नहीं है। मगर इसकी शुरुवात सरकार को करनी होगी। मेक इन इंडिया नारा कब रचा गया था? उस पर कुछ काम हुआ क्या? अब तक इस मुद्दे पर शांति की परत क्यूं बिठा रखी थी? और अब जैसे ही चाइना के खिलाफ आवाज फिर से उठने लगी, फिर आत्मनिर्भर और स्वदेशी लाइम लाइट में आ गया। लगभग पूरे देश में हाल फिलहाल ये एक हॉट टॉपिक और चर्चा का विषय बन गया है। और ऐसा माहौल वर्तमान और पिछली सभी सरकार ने अपने अपने कार्यकाल में बनाया और सभी के कार्यकाल में किंचित कम ज्यादा प्रमाण/ताव में छाया रहा।

आत्मनिर्भर और स्वदेशी निर्मित्ती हम सब चाहते है मगर जैसा की मैंने पहले लिखा, शुरुवात सरकार को करनी होगी, पारदर्शिता और दृढ़ इच्छाशक्ति से ना की सिर्फ घोषणाओं और वादों से।

अधिकांश जनता जो कि दो वक्त की रोटी रोजी के लिए दिन रात संघर्ष करती है वो तो निश्चित वो ही सामान खरीदेगी जो उसके जेब का वजन ज्यादा कम ना करे। और ये व्यावाहरिक भी है खासतौर पर जब जेब में वजन ना के बराबर या जेमतेम हो। हकीकत ये है कि हम लोग सब्जी भाजी भी भाव ताव करके खरीदते है। और ये सब्जी तो हमारे अपने किसानों की मेहनत से, (जिन्हें हम अन्नदाता कहते है) उपलब्ध होती है। फिर चीनी उत्पाद जो कि कम दाम में आसानी से उपलब्ध होते है, उन्हें लेने से हम अपने आप को कैसे रोक पाएंगे? 

चीनी वस्तुओं का आयात रुके और/या उन के जैसे या उन से बेहतर स्वदेशी वस्तुएं समांतर कीमत पर उपलब्ध हो, तभी आम जनता चीनी वस्तु खरीदना बंद कर सकेगी। 

सीधी बात है जो चीज बाज़ार में ही नहीं होगी या उसका समांतर स्वदेशी विकल्प उपलब्ध होगा तो ही उसका यतार्थ में बहिष्कार संभव हो सकेगा। वरना सिर्फ और सिर्फ कागजों पर, सोशल मीडिया पर, लंबे चौड़े राजनैतिक प्रलोभन, भाषण और भावनात्मक चर्चाएं ही होगी।

आज की ही खबर है कि आत्मनिर्भर और स्वदेशी के नारों से लबरेज सरकार ने दिल्ली मेरठ रेल प्रोजेक्ट का ठेका किसी चीनी कंपनी को दे दिया क्यूंकि उसने ४४ करोड़ रूपए से कम की बोली लगाई थी हमारी अपनी स्वदेशी लार्सन एंड टुब्रो कंपनी के मुकाबले। यदि ये सच है तो आम जनता से अपेक्षा रखना की वो चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करें ये केवल एक भावनात्मक भ्रांति ही होगी क्यूंकि ये अपेक्षा आम जनता खुद स्वयं से नहीं रख सकती।

चीनी उत्पादों का बहिष्कार करना हम सभी चाहते है, ऐसा निश्चित होना ही चाहिए, स्वदेशी और आत्मनिर्भर होने का हम सभी का सपना है, हम प्रयास भी करने की इच्छा रखते है मगर हमारे सपनों को, चाहत और प्रयासों को बल और गती कर्तबगार सरकार की नीति और (कथनी नहीं) यतार्थ में करनी से ही मिल सकेगी। 

तब तक दुर्भाग्य से ये विषय सिर्फ चर्चाओं तक ही सीमित रहेगा। और ऐसे मामलों में हम ये भी नहीं केह सकते की "ये पब्लिक है, ये सब जानती है" क्यूंकि बात जहां देशप्रेम की हो, पब्लिक दिल/जज्बे से सोचती है (मगर उनकी व्यक्तिगत वित्तीय सीमाएं होती है) और राजनीति असीमित महत्वकांक्षा/स्वहित से..


(The blog writer/compiler is a Management Professional and operates a Manpower & Property Consultancy Firm. Besides, he is Ex President of "Consumer Justice Council", Secretary of "SARATHI",  Member of "Jan Manch",  Holds "Palakatva of NMC", is a Para Legal Volunteer, District Court, Nagpur, RTI Activist, Core Committee Member of Save Bharat Van MovementParyavaran Prerna "Vidarbha", Member of Alert Citizen Group, Nagpur Police, Member of Family Welfare Committee formed under the directions of Hon. Supreme Court
Twitter: @amitgheda).



5 comments:

  1. From mobile phones, retail segment (Flipkart), Food (Zomato) etc. to mobile telephony backbone, China is everywhere. You can uninstall Chinese apps... But there's no way you can clean China out of our circulatory system, practically speaking. We're neck deep in this mess. Why did we promote FDI earlier and what were we doing when China gained more and more share of the FDI pie? We slept through the incubator phase of this mess and now when the butterfly is out, we want to go back to the 'egg' phase? It's a pity how we're being blindfolded in the name of pseudo-nationalism and other similar maladies.

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    1. Very true..However here we cannot say that "ye public hai, ye sab jaanti hai" as when it comes to national interest or deshbhakti, our simpleton public becomes very "bholi" and fails to understand the bigger game

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  2. एकदम सही है सर ,
    इसके लिए भारत सरकार ने गंभीर होकर ठोस निर्णय लेना चाहिए, और इसी समय से भारत के मार्केट से सभी चीनी वस्तुएं बाहर करनी चाहिए और इसके बाद चीन।से सुई भी नही खरीदनी चाहिये, आत्मनिर्भर भारत बनाना है तो सुरुवात इसी समय करनी चाहिए

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  3. एकदम सही है सर ,
    इसके लिए भारत सरकार ने गंभीर होकर ठोस निर्णय लेना चाहिए, और इसी समय से भारत के मार्केट से सभी चीनी वस्तुएं बाहर करनी चाहिए और इसके बाद चीन।से सुई भी नही खरीदनी चाहिये, आत्मनिर्भर भारत बनाना है तो सुरुवात इसी समय करनी चाहिए

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    1. बिल्कुल शेखर। सरकार की कथनी और करनी में विरोधाभास नहीं होना चाहिए।

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