आधी रात को जाग आ गई। नींद नही आ रही। TV लगाकर बैठा। सभी सो रहे इसलिये mute कर कोरोना का हाहाकार देखता रहा, सोचता रहा। हमारे आदरणीय, देश के लिए समर्पित प्रधान मंत्री आ. मोदीजी, मुख्यमंत्री श्री उद्धव ठाकरे जी, मनपा आयुक्त श्री मुंडेजी और उनके सहकर्मी, पुलिस वर्ग, स्वास्थ्य कर्मचारी एव अन्य सभी निरंतर हमारी मद्त - मार्गदर्शन कर रहे है, मनोबल बढ़ा रहे है, हमारी सुरक्षा के लिए रात दिन एक कर रहे है। हमारे लिये ही घर बार छोड़ 18 - 18 घन्टे काम कर रहे है। हमारी चिंता उन्हें हमारे से भी ज्यादा है. हम तो बस घर मे आराम ही कर रहे है। उनका दिल से पूरा साथ देना, उनके सभी सुझावों का, आदेशों का पालन करना हमारा परम् कर्त्तव्य है।
मै स्वयं ज्येष्ट नागरिक, पांच दशकों का अनुभवी फैमिली डॉक्टर हूं। जो भी विचार इस समय मेरे मन में आ रहे आप से साझा कर रहा हूं। सकारात्मक विचार तो भूल ही जाईये, बस नकारात्मक विचार ही जैसे कि संभवतः आप के मन में भी आ रहे होंगे, मेरे भी दिमाग़ में आ रहे है। भविष्य की चिंता हो रही है। ये जानते हुए भी की, जो होना है वही होकर रहेगा, फिर भी...
आज हमारे सामने सबसे बडा अदृश्य - अनजाना - अपरिचित दुश्मन कौन है जिससे हम सभी आतंकित है? सोते, उठते - बैठते उसी का ख्याल मन के एक कोने में रहता है? सभी के दिल में एक ही नाम आता है। वह जात -पात, अमीर - गरीब, रूतबा, धर्म, व्यवसाय कुछ भी देखता नही। डाक्टर, पुलिस कर्मी, सफाई कर्मचारी, उम्र में छोटे -बड़े, नेता, अभिनेता किसी को भी बख्शता नही। उस से बचेंगे तो ही बाकी काम कर सकेंगे, इसलिये कोई भी व्यक्तिगत ग़लत फहमियां दिल में ना लाये। साथ मिलकर ही कोरोना को खत्म कर सकेंगे नही तो वह हमें ---- कर देगा। गिले शिकवे बाजु में रखिये, भूल जाइए। नेता, व्यावसायिक, बिल्डर, छोटे बड़े धंदे वाले, *आज तो सभी बस जुड़ जाईये.* इस ग़लतफ़हमी में न रहिये कि कोरोना खत्म हो गया तो सभी चिन्ता खत्म। इतिहास गवाह है, हर कुछ अंतराल बाद कोई न कोई ऐसी ही विपत्ति आती रहती है, ठीक वैसे ही जेसे रात के बाद दिन और दिन के बाद रात. जब विपत्ति आती है, हम हाय तौबा मचाते है, सुधर जाने की बड़ी बडी कसमें लेते है, हमारे जीवनशैली में बदलाव करेंगे, ऐसे जियेंगे, यह छोड़ देंगे आदि। किंतु राहत मिलते ही सब भूलकर फिर अपने पुराने तौर तरीके अपना लेते है। वही पुरानी जीवन शैली शुरू कर देते है। खूब होटलिंग करेंगे, उल्टा सीधा खाएंगे, व्यायाम का तो नाम ही मत लीजिये, खूब अनावश्यक खर्चा करेंगे, बड़े बड़े लोन लेंगे, किश्तें बनाएंगे, एवं स्वयं द्वारा बढ़े हुए खर्चों के अनुपात से किसी भी तरीके से कमाई बढाने की होड़ में लग जाएंगे। खर्चा कम करने की सोचेंगे भी नही। हर चीज आपको आवश्यक लगती है। अपने अनावश्यक शौक को अपनी जरूरतें बनाने लगते है। काम के लिए आपको नौकर चाहिए ही चाहिए।
क्यों न इस बार हम एक नया प्रयोग करे? Lockdown के दौरान वाली - भले ही मजबूरी में की हो, वही जीवन शैली 6 महिने आजमा कर क्यों न देखे? न जचें तो जबरदस्ती थोड़े ही है।
मेरी तरह आप सभी का अपने अपने मित्रों यवं परिजनों से संवाद होते रहता होगा। सभी का अनुभव है की lockdown के समय की जीवनशैली अपनाने से हमे निराश नही होना पड़ेगा। यह कोरोना जाएगा तो इसका भाई बंधु दूसरा आएगा। उस से लड़ने हमारी जीवनशैली ही काम आएगी, रुपया, पैसा, साधन, संपंत्ता, रुतबा नही। हम फिर हाय तौबा मचाएंगे। रामबाण इलाज एक ही है- स्वावलंबी होना, घरेलू - खुद के काम खुद करना, कुछ अपवादो के साथ। प्रतिकार शक्ति बढ़ाने वाला भोजन लेना, शराब - गुटका / धूम्रपान आदि व्यसनों से दूरी बनाना। इससे पैसा तो बचेगा ही, साथ ही स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। स्टाफ ना आने से भी तनाव नही होगा। आज महीने भर से हम सबसे ज्यादा कौन सी बात से परेशान है? नौकर, माफ कीजिये मै उन्हें सहायक कहना पसन्द करता हूं, नही आ रहे इसीलीये ना? हर काम करते समय आह निकलती है, क्योंकि हमें बैठे रहने की आदत हो गई है, शारीरिक श्रम की बिल्कुल आदत नही है। सोचिये, जो काम हमारे सहायक कर सकते है, हम क्यों नही? हम gym जाते है, अवश्य जाईये, मै भी जाता हूँ। किन्तु कुछ gym जैसा फायदा हमे खुद के काम खुद करने से भी मिलेगा। है ना एक पंथ दो काज / double benefit स्कीम! हम पराधीन हो रहे है, आलसी हो रहे है। सोते उठते बैठते सहायकों पर ही विचार। इतना तो शायद हम ईश्वर का भी स्मरण नही करते। मेरे क्लिनिक में मेरे सहायक है, घर पर भी। आपके भी होंगे ही। Lockdown के दौरान मैंने उन्हें कभी चिंतित या विचलित नही देखा। क्योंकि उन्हें स्वयं का काम करने की आदत है एवम उनके खर्चे उन्होंने कमाई तक ही सीमित रखे है। हम उनके विपरीत है। Lockdown उठते ही पहला काम उन्हें बुलाने का।
एक चिकित्सक के नाते मै विश्वास दिलाता हूं, शारीरिक श्रम से प्रतिकार शक्ति बढ़ेगी, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, संधिवात, बदन का दर्द आदि की तीव्रता कम हो जायेगी। सुकून मिलेगा, नींद अच्छी आएगी। दवाईयों की जरुरत कम पड़ेगी,अनावश्यक ख़ुराक (over eating) कम हो जायेगी, साथ ही दुष्परिणाम भी। मै डॉक्टर भी हूं एवं मै भी बीमारियों से अछूता नहीं हूं। आप मेरे जैसे कुछ लोगो से पूछिये, उनका एक महीने का तजुर्बा क्या कहता है। मेरे मित्रों का निष्कर्ष है lockdown के समय का महिने भर का खर्च हमारे नियमित खर्च से चौथाई से भी कम है। पहले कभी हमने इस बारे में सोचा ही नही। वजह - होटल, मॉल, थिएटर, क्लब, सार्वजनिक स्थल सभी बन्द है जहां हम खर्च करते थे - बगैर जरूरत के। हम अनावश्यक बातों पर जरूरत से ज्यादा पैसा खर्चा कर रहे थे। खर्च के अनुपात से कमाई बढाने के के पीछे भाग रहे थे। कुछ लोग मेरे विचारों से सहमत न हो।
मेरी सोच मेरे जैसे साधारण एवं जमीन से जुड़ी जिवन शैली वालों के लिए है। प्रशासन के साथ सहयोग कीजिये, घर मे ही रहिये। ज्यादा समय परिवार वालों को दिजीये, आपसी आत्मीयता बढाइये। एक ही लक्ष रखिये, उसी में पूरी ताकत लगाइये, इस से हमारा अनावश्यक बातों पर से ध्यान घटेगा एवं हम आज की आवश्यक, अति - अति सबसे ज्यादा आवश्यक बात की ओर हमारी सोच - ताकत लगा पाएंगे। lockdown एवं उसके पहले की जीवनशैली का विश्लेषण कीजिए। उचित बदलाव लाइये। सुरक्षित अंतर रखिये, मास्क पहनिए, sanitiser का इस्तेमाल कीजिये, साबुन से निर्देशानुसार नियमित हात धोइये, साफ सफ़ाई का ध्यान रखिये, व्यायाम कीजिये, छोटी सी भी शिकायत हो तो बड़े अस्पताल में जाने की नौबत आने तक इंतजार न कीजिये। तुरंत अपने पारिवारिक चिकित्सक से संपर्क कीजिये। सभी डॉक्टर्स सरकार के आदेश अनुसार आपके लिए ही निजी दवाखानों मे सेवा दे रहे है, ताकि प्रशासन कोरोना के मरीजो की ओर ज्यादा ध्यान दे सके। क्या हमें डर नही है? हमे तो बहोत ज्यादा इंफेक्शन का खतरा है। क्या हम डॉक्टरों को कोई अतिरिक्त इन्शुरेंस कवर प्राप्त है? क्या डॉक्टर समझकर कोरोना हमे माफ करेगा? नही ना, तो आइये... जरूरत के समय हमें याद कीजिये। योग - मेडिटेशन द्वारा फेफडों की क्षमता बढाइये, क्योंकि कोरोना वही पर हमला करता है, फेफड़े मजबूत होंगे तो ही हम कोरोना का मुकाबला कर जीत सकते है, उसकी तीव्रता घटा सकते है। प्रभु की नियमित प्रार्थना कीजिये, बीते अच्छे समय के लिए उसका धन्यवाद एवं भविष्य के लिए आशीर्वाद लीजिये। बस यही हमारे बस में है, कर्म किये जाइये, बाकी उसपर छोड़ दीजिए। श्रद्धा रखिये - अंधश्रद्धा नही। याद रखिये, किसी पर नकारात्मक टिका टिपणी का उस व्यक्ति पर असर कम एवं करनेवाले पर गलत प्रभाव ज्यादा होता है, सुकून खत्म हो जाता है। हम ये सब आचरण में लायेंगे तो ही आनेवाले समय मे खुद की मदद कर सकेंगे, सुखी हो सकेंगे.
डॉ गिरधर हेडा
फैमिली फिजिशियन-स्किन-डायबिटीज,
नागपुर।
M: 98 22 22 76 77.
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