Wednesday, April 8, 2020

पर्यावरण और प्रकृति के अस्तित्व पर मंडराता खतरा.. क्या इस वायरस का सामना हम कर पाएंगे?


इस समय लगभग पूरी दुनिया दहशत में है। वजह: कोरोना, जिसने अकस्मात, बिना किसी चेतावनी के हमारे पृथ्वी पर दस्तक दी। क्योंकि यह आपदा अचानक, बिन बुलाए, बगैर चेतावनी के मानव जाति पर हमला कर चुकी है तो सहाजीक है कि अभी हमारे पास इससे लड़ने के लिए, इससे छुटकारा पाने के लिए, इसे जड़ से खत्म करने के लिए कोई पुख्ता दवा, इलाज या रोडमैप नहीं है। 

हर इंसान ख़ौफ़ज़दा, भयभीत, विचलित, परेशान और तनाव में है। लगभग सारी दुनिया की गति पर मानो रोक सी लग गई है। सड़कें खाली, दुकानें, कार्यालय, स्कूल, कॉलेज बंद है। लाखों लोग संक्रमित होने के कारण अस्पताल में है, हजारों लोगों की जान जा चुकी है और कई लोग अभी ऐसे भी है जिनकी संक्रमित होने की संभावना है और सम्भवतः जिनकी जानकारी प्रशासन को नहीं है। 

लोगों में यह भय है कि यदि इस बीमारी का जल्द ही निवारण नहीं हो पाया तो क्या होगा? कितनी और जानें जाएगी? हमारा और हमारे बच्चों का, हमारे परिवार के लोगों का आगे क्या होगा? ऐसे और इनके जैसे कई सवाल लगभग हर इंसान के मन मस्तिष्क में, फिर चाहे वह किसी भी प्रांत, किसी भी देश का हो, यथा कथा कौंध ही रहे हैं। वैसे पूरी दुनिया के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य से संबंधित लोग इस आपदा के निदान के शोध में दिन रात लगे हुए हैं और ईश्वर चाहें तो जल्द ही इसका उपचार संभव हो पाएगा।

यदि कोरोना जैसी आकस्मिक आपदा ने हम सभी कि सुख, शांति और अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है तो निश्चित ही हमें इस बात पर गहन मंथन करना पड़ेगा की जल, जंगल, पर्यावरण, पेड़ पौधे, प्रकृति इन सभी नैसर्गिक संपदाओं का हम लोग जिस तेजी से और जिस बर्बरता से हनन, उपेक्षा, शोषण और खात्मा कर रहे हैं, यदि ये संपदा विलुप्त हो, आपदा का रूप धारण कर ले, तो मानव जाति का क्या होगा?

हम सभी विगत अनेक वर्षों से इन नैसर्गिक संपदाओं के प्रति निर्दयी रहे हैं। घरती के गर्भ में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों, खनिज संपदा के उपयोग में हम सभी इतना लिप्त हो गये है कि पर्यावरण की नैसर्गिक छटा धूमिल होती दिख रही है। नतीजा: पृथ्वी पर ये जीवनदायिनी संपदाएं तेजी से लुप्त हो रही है। 

जंगलों को नष्ट किया जा रहा है, पेड़ काटें जा रहे है। नगरीकरण, औधोगिकरण का तेजी से जाल फैल रहा है, आधुनिकता की होड़ देखी जा रही है, ज्यादा प्रधानता सांसारिक सुख सुविधाओं को दी जा रही है। हम ये नहीं समझ रहें है या शायद समझना नहीं चाहते कि इन संपदाओं के होते हुए पतन को नजरंदाज करने से और उनके नष्ट होने से हमारी सारी भौतिक सुख सुविधाएं धरी की धरी रह जाएंगी!! 

पेड़ नहीं होने से शुद्ध हवा नहीं मिलेगी, पानी का चक्र प्रभावित होगा। तब पर्याप्त मात्रा में बारिश नहीं होगी। हमें सूखे का सामना करना पड़ेगा। किसानों के पास खेत तक पानी नहीं होगा। तब दुनिया की खाद्य आपूर्ति प्रभावित होगी। हमें भुखमरी से मरना होगा। शुद्ध हवा के अभाव में जहरीली हवा के दुष्प्रभावों से और पानी की किल्लत से हमारा और हमारे आने वाले कल का भविष्य अंधकारमय होना तय है।

पर्यावरण का लगातार निष्क्रिय रूप से दोहन ने कई तरह के असंतुलन को जन्म दिया है जिनमे बाढ़, भूकंप, अमल वर्षा, नदियों - तालाबों का सूखना, कुवों में पानी न होना, जल संकट, फसल चक्र प्रभावित होना, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक ताप बढ़ना, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, प्राकृतिक खतरों का बढ़ना, चक्रवात आना आदि देखे जा रहे है। यह सभी कोरोना की तरह अकस्मात, बगैर किसी चेतावनी के और निश्चित ही बिन बुलाए तो दस्तक नहीं ही दे रहे है। यह तो हम सभी के गैर जिम्मेदाराना रवैये की उत्पत्ति है। 

अच्छा, कोरोना का तो कोई हाल फिलहाल उपचार, निदान या उससे निपटने का कोई समाधान हमारे पास नहीं है, मगर इन नैसर्गिक संपदाओं को विलुप्त होने से बचाने के, इनका जतन करने के, इन्हें सहेजने के, सवारने के उपाय हमारे पास है, बल्कि हमारे अपने हाथों में ही है। मगर, क्योंकि यह सभी संपदाएं हमें मुफ्त में, विरासत में मिली है, संभवतः इसीलिए हमें कोई अहमियत नहीं है और हम इनकी अनदेखी कर रहें है। 

एक तरफ कोरोना की इस दहशत में हम सभी लोग इसके निवारण के लिए और निजात पाने के लिए रात दिन एक कर रहे है और दूसरी ओर ये नैसर्गिक संपदाएं जिन्होंने अपने विलुप्त होने की पूर्व घोषित चेतावनी और संकेत सालों से या यूं कहें कि दशकों से हमें देते आ रहे हैं, उसके लिए हम हाथ पर हाथ धरे बैठे है। क्या यह जरूरी है कि जब प्यास लगे तभी कुआं खोदा जाए? क्या इस विपदा से और भविष्य में आने वाली इसकी तीव्रता से जूझने के लिए हम पहले से ही यथा संभव प्रयास नहीं कर सकते या नहीं करना चाहिए? खास तौर पर जब इसका अस्तित्व हमारे ही कुकर्मों से हुआ हो।

मानव शरीर का निर्माण पंच तत्व से हुआ है जिनमें भूमि, गगन, वायु, अग्नि व नीर (जल) का समावेश है। प्रकृति के यह पंच तत्वों की रक्षा और जतन करना हम सभी की मुख्य जिम्मेदारी होनी चाहिये, तभी पर्यावरण सरंक्षण का अभिप्राय और उद्देश्य सही मायने में सफल हो सकता है। इन पंच तत्व के सरंक्षण में समाज के हर वर्ग को आगे आने की जरूरत है। पर्यावरण पर सभी की जिंदगी आधारित है, अतः सामूहिक प्रतिबद्धता के साथ संकल्पित और एकजुट प्रयास करने की जरूरत है।

पेड़ – पौधे, जल हमारे पर्यावरण के बहुत बड़े संरक्षक हैं । वे उस प्राणवायु (ऑक्सीजन) का अक्षय भण्डार भी हैं की जिसके अभाव में किसी प्राणी का एक पल के लिए जीवित रह पाना भी असंभव है। बिना जल के तो पेड़-पौधे भी जीवित नहीं रह सकते। शायद इसीलिए जल की जीवन कहा गया है। अगर समय रहते हमने अपनी भूल को नहीं सुधारा तो आने वाले वक़्त में भारी जल-संकट का सामना पूरी दुनिया को करना पड सकता है।

आज नहीं तो कल कोरोना का उपचार सामने आते ही हम उस पर विजय पा ही लेंगे, मगर इन नैसर्गिक संपदाओं का जतन और निदान तो हमारे हाथों में ही है। अतः पेड़ पौधे, जल का सरंक्षण अनिवार्य रूप से और युद्धस्तर पर हो, ये हमारे वर्तमान की और विशेषतः हमारे आने वाली पीढ़ी की अत्यावश्यक दरकार है।

आओं मिल जुल कर करें जतन
ना उजड़े हमारे बाग, बागीचे, वन
जल बिन खतरे में पर्यावरण
नाश जो इनका होगा,
होगा हमारा पतन
नाश जो इनका होगा,
होगा हमारा पतन..

The article is COPYRIGHTED in the blogger's name.

(The blog writer/compiler is a Management Professional and operates a Manpower & Property Consultancy Firm. Besides, he is Ex President of "Consumer Justice Council", Secretary of "SARATHI",  Member of "Jan Manch",  Holds "Palakatva of NMC", is a Para Legal Volunteer, District Court, Nagpur, RTI Activist, Core Committee Member of Save Bharat Van Movement, Paryavaran Prerna "Vidarbha", Member of Alert Citizen Group, Nagpur Police, Member of Family Welfare Committee formed under the directions of Hon. Supreme Court
Twitter: @amitgheda).

(कोविद 19 से कुछ सावधानियों को अपनाते हुए और सरकार और चिकित्सा बिरादरी द्वारा दी गई चेतावनी और सलाह के साथ बचा जा सकता है। घबराने की जरूरत नहीं है, हमें बस सावधान रहने की जरूरत है)





5 comments:

  1. Excellent Hedaji ,it is a need of time ,we should seriously save our environment

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    1. Thanks. Yes, in fact we are late already. Nevertheless, better late than never.

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  2. Great Achievement of your daughter Dr. Hedaji.congrats to her and you both as you both have given freedom and valuable guidance to her from time to time.

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    1. Thank you Kaka for your blessings and encouragement.

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  3. From Suresh Sathe.

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