लॉकडाउन के दौरान अकेले होने से जूझ रहे हर व्यक्ति के लिए ....
यह बिल्कुल वैसा ही है जो हमारे माता-पिता, दादा-दादी और अन्य परिजनों को तब लगता होगा जब हम उनसे मिलते नहीं हैं या मिलते हुए भी उनकी उपेक्षा या अनदेखी करते है। वो पीड़ा/परेशानी तो निश्चित ही इस लॉकडाउन के तथाकथित परेशानी से कहीं ज्यादा आघात पहुंचाती होगी। वृद्धाश्रम में वृद्ध लोगों को ऐसा ही लगता होगा जब अपने होते हुए भी कोई उनसे मिलने नहीं आता होगा।
हमारे पास तो फिर भी इस लॉकडाउन में करने को काफी कुछ है, मगर माता - पिता, परिजनों के पास सिवाय यादों के, अपनों के अपनेपन कि उम्मीदों के, उनके सानिध्य में जीवन बिताने के जो सपने किसी समय संजोय थे, उस के सिवाय कुछ भी नहीं होता।
होती है तो ये निर्मम वास्तविकता, की वो उम्मीदों के सपने जो उन्होंने बुने थे, उनकी गांठ तार तार हो उधड़ सी गई और सारे के सारे सपने, उम्मीदों के परे बिखर गए।
यह लॉकडाउन तो अस्थायी है, देर सवेर खत्म हो ही जायेगा। मगर फिर भी निश्चित ही हम सभी के लिए ये एक अभिशाप है। और ये अभिशाप हम सभी, खासकर उन कु(संतानों, पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू, दामाद आदि) के लिए एक सबक, एक कटु अहसास होना चाहिए जिन्होंने अपने माता-पिता-परिजनों का, संबंधों का परित्याग कर दिया। दूसरे शब्दों में, उनके जीवन में स्वकेंद्रित स्थाई लॉकडाउन थोप दिया।
दरअसल, संबंध खरीदे नहीं जा सकते। संबंध तो केवल जिये जा सकते हैं, निभाए जा सकते हैं और सहेजे जा सकते हैं। हमारा समाज संबंधों का ताना-बाना है, जिस पर हम अपने आस-पास कई रिश्ते बुनते हैं।
और भूल सुधारने का समय कभी नहीं जाता। जिस तरह, अगर कपड़ों में गांठ पड़ जाए तो बुनकर बड़ी सफाई से इसे छिपा देता है, उसी तरह हम संबंधों की उधड़ी हुई गांठ रफ्फू तो कर ही सकते है।
हर आपदा कोई ना कोई सबक देती ही है। उसे लेना या नजरंदाज करना हम पर निर्भर है। मगर समय का चक्र निरंतर गतिमान होता है, ये हमेशा हम सभी को याद रखना चाहिए। फिर भी यदि हम आज संबंधों को दरकिनार कर रहें है तो हमें सोच लेना चाहिए कि इसका अगला पड़ाव हमारा ही हैं। क्योंकि स्वयं के लिए, स्वयं की जगह और स्वयं के साथ होने वाला व्यवहार/बर्ताव, हम स्वयं ही आरक्षित कर रहे हैं।
हमारेे वर्तमान के कर्मों से हमारे भविष्य की डोर एक अटूट बंधन में बंधी हुई है। संबंधों के प्रति संवेदनशील रहेंगे तो वर्तमान और आने वाले भविष्य में रिश्तों के बंधन की डोर अटूट रहेगी, वरना....
.....कर्म तो अपना खेल रचता ही रहता है, यही कर्म का सिद्धांत है।
कोरोना के इस दौर में तो हमें कहीं इस वायरस का संक्रमण न हो जाए इसलिए लॉकडाउन मोड में कुछ समय के लिए दूरियां बनाए हुए है। मगर इसके अपवाद, सांसारिक जीवन और रिश्तों के दौर में, दूरियां/तल्खियां बनाने से संबंधों में संक्रमण का फैलाव निश्चित है।
रिश्तों में लॉकडाउन की कोई जगह नहीं, रिश्तों को हमेशा ग्रीन जोन में ही रखें!
(The blog writer/compiler is a Management Professional and operates a Manpower & Property Consultancy Firm. Besides, he is Ex President of "Consumer Justice Council", Secretary of "SARATHI", Member of "Jan Manch", Holds "Palakatva of NMC", is a Para Legal Volunteer, District Court, Nagpur, RTI Activist, Core Committee Member of Bharat Van Movement, Member of Alert Citizen Group, Nagpur Police, Member of Family Welfare Committee formed under the directions of Hon. Supreme Court).