Wednesday, April 29, 2020

रिश्तों में लॉकडाउन

लॉकडाउन के दौरान अकेले होने से जूझ रहे हर व्यक्ति के लिए .... 

यह बिल्कुल वैसा ही है जो हमारे माता-पिता, दादा-दादी और अन्य परिजनों को तब लगता होगा जब हम उनसे मिलते नहीं हैं या मिलते हुए भी उनकी उपेक्षा या अनदेखी करते है। वो पीड़ा/परेशानी तो निश्चित ही इस लॉकडाउन के तथाकथित परेशानी से कहीं ज्यादा आघात पहुंचाती होगी। वृद्धाश्रम में वृद्ध लोगों को ऐसा ही लगता होगा जब अपने होते हुए भी कोई उनसे मिलने नहीं आता होगा। 

हमारे पास तो फिर भी इस लॉकडाउन में करने को काफी कुछ है, मगर माता - पिता, परिजनों के पास सिवाय यादों के, अपनों के अपनेपन कि उम्मीदों के, उनके सानिध्य में जीवन बिताने के जो सपने किसी समय संजोय थे, उस के सिवाय कुछ भी नहीं होता।

होती है तो ये निर्मम वास्तविकता, की वो उम्मीदों के सपने जो उन्होंने बुने थे, उनकी गांठ तार तार हो उधड़ सी गई और सारे के सारे सपने, उम्मीदों के परे बिखर गए। 

यह लॉकडाउन तो अस्थायी है, देर सवेर खत्म हो ही जायेगा। मगर फिर भी निश्चित ही हम सभी के लिए ये एक अभिशाप है। और ये अभिशाप हम सभी, खासकर उन कु(संतानों, पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू, दामाद आदि) के लिए एक सबक, एक कटु अहसास होना चाहिए जिन्होंने अपने माता-पिता-परिजनों का, संबंधों का परित्याग कर दिया। दूसरे शब्दों में, उनके जीवन में स्वकेंद्रित स्थाई लॉकडाउन थोप दिया। 

दरअसल, संबंध खरीदे नहीं जा सकते। संबंध तो केवल जिये जा सकते हैं, निभाए जा सकते हैं और सहेजे जा सकते हैं। हमारा समाज संबंधों का ताना-बाना है, जिस पर हम अपने आस-पास कई रिश्ते बुनते हैं। 

और भूल सुधारने का समय कभी नहीं जाता। जिस तरह, अगर कपड़ों में गांठ पड़ जाए तो बुनकर बड़ी सफाई से इसे छिपा देता है, उसी तरह हम संबंधों की उधड़ी हुई गांठ रफ्फू तो कर ही सकते है। 

हर आपदा कोई ना कोई सबक देती ही है। उसे लेना या नजरंदाज करना हम पर निर्भर है। मगर समय का चक्र निरंतर गतिमान होता है, ये हमेशा हम सभी को याद रखना चाहिए। फिर भी यदि हम आज संबंधों को दरकिनार कर रहें है तो हमें सोच लेना चाहिए कि इसका अगला पड़ाव हमारा ही हैं। क्योंकि स्वयं के लिए, स्वयं की जगह और स्वयं के साथ होने वाला व्यवहार/बर्ताव, हम स्वयं ही आरक्षित कर रहे हैं। 

हमारेे वर्तमान के कर्मों से हमारे भविष्य की डोर एक अटूट बंधन में बंधी हुई है। संबंधों के प्रति संवेदनशील रहेंगे तो वर्तमान और आने वाले भविष्य में रिश्तों के बंधन की डोर अटूट रहेगी, वरना....

.....कर्म तो अपना खेल रचता ही रहता है, यही कर्म का सिद्धांत है।

कोरोना के इस दौर में तो हमें कहीं इस वायरस का संक्रमण न हो जाए इसलिए लॉकडाउन मोड में कुछ समय के लिए दूरियां बनाए हुए है। मगर इसके अपवाद, सांसारिक जीवन और रिश्तों के दौर में, दूरियां/तल्खियां बनाने से संबंधों में संक्रमण का फैलाव निश्चित है।

रिश्तों में लॉकडाउन की कोई जगह नहीं, रिश्तों को हमेशा ग्रीन जोन में ही रखें!

(The blog writer/compiler is a Management Professional and operates a Manpower & Property Consultancy Firm. Besides, he is Ex President of "Consumer Justice Council", Secretary of "SARATHI",  Member of "Jan Manch",  Holds "Palakatva of NMC", is a Para Legal Volunteer, District Court, Nagpur, RTI Activist, Core Committee Member of Bharat Van Movement, Member of Alert Citizen Group, Nagpur Police, Member of Family Welfare Committee formed under the directions of Hon. Supreme Court).

Character Building

When the ancient Chinese decided to live in peace, they made the great wall of China.
They thought no one could climb it due to its height. During the first 100 years of its existence, the Chinese were invaded thrice. And everytime, the hordes of enemy infantry
had no need of penetrating or climbing over the wall... because each time they bribed the guards and came through the doors.

The Chinese built the wall but forgot the character-building of the wall-guards.

Thus, the building of human character comes BEFORE
building of anything else..
Thats what our Students need today.

Like one Orientalist said:

If you want to destroy the civilization of a nation there are 3 ways:

1. Destroy family structure.

2. Destroy education.

3. Lower their role models and references.

 1. In order to destroy the family: Undermine the role of Mother, so that she feels ashamed of being a housewife.

2. To destroy education: You should give no importance to Teacher, and lower his place in
society so that the students despise him.

3. To lower the role models: You should undermine the Scholars, doubt them untill no
one listens to them or follows them.

For when a conscious mother disappears, a dedicated teacher disappears and there's a downfall of role models, WHO will teach the youngsters VALUES?

Have a thought!

Is our home also invaded?

Wednesday, April 8, 2020

पर्यावरण और प्रकृति के अस्तित्व पर मंडराता खतरा.. क्या इस वायरस का सामना हम कर पाएंगे?


इस समय लगभग पूरी दुनिया दहशत में है। वजह: कोरोना, जिसने अकस्मात, बिना किसी चेतावनी के हमारे पृथ्वी पर दस्तक दी। क्योंकि यह आपदा अचानक, बिन बुलाए, बगैर चेतावनी के मानव जाति पर हमला कर चुकी है तो सहाजीक है कि अभी हमारे पास इससे लड़ने के लिए, इससे छुटकारा पाने के लिए, इसे जड़ से खत्म करने के लिए कोई पुख्ता दवा, इलाज या रोडमैप नहीं है। 

हर इंसान ख़ौफ़ज़दा, भयभीत, विचलित, परेशान और तनाव में है। लगभग सारी दुनिया की गति पर मानो रोक सी लग गई है। सड़कें खाली, दुकानें, कार्यालय, स्कूल, कॉलेज बंद है। लाखों लोग संक्रमित होने के कारण अस्पताल में है, हजारों लोगों की जान जा चुकी है और कई लोग अभी ऐसे भी है जिनकी संक्रमित होने की संभावना है और सम्भवतः जिनकी जानकारी प्रशासन को नहीं है। 

लोगों में यह भय है कि यदि इस बीमारी का जल्द ही निवारण नहीं हो पाया तो क्या होगा? कितनी और जानें जाएगी? हमारा और हमारे बच्चों का, हमारे परिवार के लोगों का आगे क्या होगा? ऐसे और इनके जैसे कई सवाल लगभग हर इंसान के मन मस्तिष्क में, फिर चाहे वह किसी भी प्रांत, किसी भी देश का हो, यथा कथा कौंध ही रहे हैं। वैसे पूरी दुनिया के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य से संबंधित लोग इस आपदा के निदान के शोध में दिन रात लगे हुए हैं और ईश्वर चाहें तो जल्द ही इसका उपचार संभव हो पाएगा।

यदि कोरोना जैसी आकस्मिक आपदा ने हम सभी कि सुख, शांति और अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है तो निश्चित ही हमें इस बात पर गहन मंथन करना पड़ेगा की जल, जंगल, पर्यावरण, पेड़ पौधे, प्रकृति इन सभी नैसर्गिक संपदाओं का हम लोग जिस तेजी से और जिस बर्बरता से हनन, उपेक्षा, शोषण और खात्मा कर रहे हैं, यदि ये संपदा विलुप्त हो, आपदा का रूप धारण कर ले, तो मानव जाति का क्या होगा?

हम सभी विगत अनेक वर्षों से इन नैसर्गिक संपदाओं के प्रति निर्दयी रहे हैं। घरती के गर्भ में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों, खनिज संपदा के उपयोग में हम सभी इतना लिप्त हो गये है कि पर्यावरण की नैसर्गिक छटा धूमिल होती दिख रही है। नतीजा: पृथ्वी पर ये जीवनदायिनी संपदाएं तेजी से लुप्त हो रही है। 

जंगलों को नष्ट किया जा रहा है, पेड़ काटें जा रहे है। नगरीकरण, औधोगिकरण का तेजी से जाल फैल रहा है, आधुनिकता की होड़ देखी जा रही है, ज्यादा प्रधानता सांसारिक सुख सुविधाओं को दी जा रही है। हम ये नहीं समझ रहें है या शायद समझना नहीं चाहते कि इन संपदाओं के होते हुए पतन को नजरंदाज करने से और उनके नष्ट होने से हमारी सारी भौतिक सुख सुविधाएं धरी की धरी रह जाएंगी!! 

पेड़ नहीं होने से शुद्ध हवा नहीं मिलेगी, पानी का चक्र प्रभावित होगा। तब पर्याप्त मात्रा में बारिश नहीं होगी। हमें सूखे का सामना करना पड़ेगा। किसानों के पास खेत तक पानी नहीं होगा। तब दुनिया की खाद्य आपूर्ति प्रभावित होगी। हमें भुखमरी से मरना होगा। शुद्ध हवा के अभाव में जहरीली हवा के दुष्प्रभावों से और पानी की किल्लत से हमारा और हमारे आने वाले कल का भविष्य अंधकारमय होना तय है।

पर्यावरण का लगातार निष्क्रिय रूप से दोहन ने कई तरह के असंतुलन को जन्म दिया है जिनमे बाढ़, भूकंप, अमल वर्षा, नदियों - तालाबों का सूखना, कुवों में पानी न होना, जल संकट, फसल चक्र प्रभावित होना, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक ताप बढ़ना, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, प्राकृतिक खतरों का बढ़ना, चक्रवात आना आदि देखे जा रहे है। यह सभी कोरोना की तरह अकस्मात, बगैर किसी चेतावनी के और निश्चित ही बिन बुलाए तो दस्तक नहीं ही दे रहे है। यह तो हम सभी के गैर जिम्मेदाराना रवैये की उत्पत्ति है। 

अच्छा, कोरोना का तो कोई हाल फिलहाल उपचार, निदान या उससे निपटने का कोई समाधान हमारे पास नहीं है, मगर इन नैसर्गिक संपदाओं को विलुप्त होने से बचाने के, इनका जतन करने के, इन्हें सहेजने के, सवारने के उपाय हमारे पास है, बल्कि हमारे अपने हाथों में ही है। मगर, क्योंकि यह सभी संपदाएं हमें मुफ्त में, विरासत में मिली है, संभवतः इसीलिए हमें कोई अहमियत नहीं है और हम इनकी अनदेखी कर रहें है। 

एक तरफ कोरोना की इस दहशत में हम सभी लोग इसके निवारण के लिए और निजात पाने के लिए रात दिन एक कर रहे है और दूसरी ओर ये नैसर्गिक संपदाएं जिन्होंने अपने विलुप्त होने की पूर्व घोषित चेतावनी और संकेत सालों से या यूं कहें कि दशकों से हमें देते आ रहे हैं, उसके लिए हम हाथ पर हाथ धरे बैठे है। क्या यह जरूरी है कि जब प्यास लगे तभी कुआं खोदा जाए? क्या इस विपदा से और भविष्य में आने वाली इसकी तीव्रता से जूझने के लिए हम पहले से ही यथा संभव प्रयास नहीं कर सकते या नहीं करना चाहिए? खास तौर पर जब इसका अस्तित्व हमारे ही कुकर्मों से हुआ हो।

मानव शरीर का निर्माण पंच तत्व से हुआ है जिनमें भूमि, गगन, वायु, अग्नि व नीर (जल) का समावेश है। प्रकृति के यह पंच तत्वों की रक्षा और जतन करना हम सभी की मुख्य जिम्मेदारी होनी चाहिये, तभी पर्यावरण सरंक्षण का अभिप्राय और उद्देश्य सही मायने में सफल हो सकता है। इन पंच तत्व के सरंक्षण में समाज के हर वर्ग को आगे आने की जरूरत है। पर्यावरण पर सभी की जिंदगी आधारित है, अतः सामूहिक प्रतिबद्धता के साथ संकल्पित और एकजुट प्रयास करने की जरूरत है।

पेड़ – पौधे, जल हमारे पर्यावरण के बहुत बड़े संरक्षक हैं । वे उस प्राणवायु (ऑक्सीजन) का अक्षय भण्डार भी हैं की जिसके अभाव में किसी प्राणी का एक पल के लिए जीवित रह पाना भी असंभव है। बिना जल के तो पेड़-पौधे भी जीवित नहीं रह सकते। शायद इसीलिए जल की जीवन कहा गया है। अगर समय रहते हमने अपनी भूल को नहीं सुधारा तो आने वाले वक़्त में भारी जल-संकट का सामना पूरी दुनिया को करना पड सकता है।

आज नहीं तो कल कोरोना का उपचार सामने आते ही हम उस पर विजय पा ही लेंगे, मगर इन नैसर्गिक संपदाओं का जतन और निदान तो हमारे हाथों में ही है। अतः पेड़ पौधे, जल का सरंक्षण अनिवार्य रूप से और युद्धस्तर पर हो, ये हमारे वर्तमान की और विशेषतः हमारे आने वाली पीढ़ी की अत्यावश्यक दरकार है।

आओं मिल जुल कर करें जतन
ना उजड़े हमारे बाग, बागीचे, वन
जल बिन खतरे में पर्यावरण
नाश जो इनका होगा,
होगा हमारा पतन
नाश जो इनका होगा,
होगा हमारा पतन..

The article is COPYRIGHTED in the blogger's name.

(The blog writer/compiler is a Management Professional and operates a Manpower & Property Consultancy Firm. Besides, he is Ex President of "Consumer Justice Council", Secretary of "SARATHI",  Member of "Jan Manch",  Holds "Palakatva of NMC", is a Para Legal Volunteer, District Court, Nagpur, RTI Activist, Core Committee Member of Save Bharat Van Movement, Paryavaran Prerna "Vidarbha", Member of Alert Citizen Group, Nagpur Police, Member of Family Welfare Committee formed under the directions of Hon. Supreme Court
Twitter: @amitgheda).

(कोविद 19 से कुछ सावधानियों को अपनाते हुए और सरकार और चिकित्सा बिरादरी द्वारा दी गई चेतावनी और सलाह के साथ बचा जा सकता है। घबराने की जरूरत नहीं है, हमें बस सावधान रहने की जरूरत है)





Wednesday, April 1, 2020

रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य

🏹रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य🏹

1:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
2:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।
3:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
4:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
5:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
6:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
7:~मानस में छन्द संख्या = 86 है।

8:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
9:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।
10:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
11:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
12:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
13:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
14:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।

15:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
16:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।

17:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए।
18:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
19:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर।

श्री राम के दादा परदादा का नाम क्या था?
नहीं पता?? तो जानिये-
1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
3 - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
4 - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,
5 - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |
6 - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
7 - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
8 - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
9 - बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
10- अनरण्य से पृथु हुए,
11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
18- भरत के पुत्र असित हुए,
19- असित के पुत्र सगर हुए,
20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
24- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है |
25- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
26- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
27- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
28- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
29- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
30- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
31- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
32- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
33- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
34- नहुष के पुत्र ययाति हुए,
35- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
37- अज के पुत्र दशरथ हुए,
38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए |
इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ | 

'BASICS' : Always the SUPREME yardstick

Unless and until the ' BASICS ' are in the right place, all other things would eventually fall into the category of appeasement. App...