Sunday, April 1, 2018

आरक्षण: समाज एवं प्रतिभावों का कातिल

"करता हूँ अनुरोध आज मैं, भारत की सरकार से,"

"प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से…"

"वर्ना रेल पटरियों पर जो, फैला आज तमाशा है,"

"जाट आन्दोलन से फैली, चारो ओर निराशा है…"

"अगला कदम पंजाबी बैठेंगे, महाविकट हडताल पर,"

"महाराष्ट में प्रबल मराठा , चढ़ जाएंगे भाल पर…"

"राजपूत भी मचल उठेंगे, भुजबल के हथियार से,"

"प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से…"

"निर्धन ब्राम्हण वंश एक, दिन परशुराम बन जाएगा,"

"अपने ही घर के दीपक से, अपना घर जल जाएगा…"

"भड़क उठा गृह युध्द अगर, भूकम्प भयानक आएगा,"

"आरक्षण वादी नेताओं का, सर्वस्व मिटाके जायेगा…"

"अभी सम्भल जाओ मित्रों, इस स्वार्थ भरे व्यापार से,"

"प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से…"

"जातिवाद की नही , समस्या मात्र गरीबी वाद है,"

"जो सवर्ण है पर गरीब है, उनका क्या अपराध है…"

"कुचले दबे लोग जिनके, घर मे न चूल्हा जलता है,"

"भूखा बच्चा जिस कुटिया में, लोरी खाकर पलता है…"

"समय आ गया है उनका , उत्थान कीजिये प्यार से,"

"प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से…"

"जाति गरीबी की कोई भी, नही मित्रवर होती है,"

"वह अधिकारी है जिसके घर, भूखी मुनिया सोती है…"

"भूखे माता-पिता , दवाई बिना तडपते रहते है,"

"जातिवाद के कारण, कितने लोग वेदना सहते है…"

"उन्हे न वंचित करो मित्र, संरक्षण के अधिकार से"

"प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से…"

No comments:

Post a Comment

'BASICS' : Always the SUPREME yardstick

Unless and until the ' BASICS ' are in the right place, all other things would eventually fall into the category of appeasement. App...