चुनाव का समय आते ही, जैसे वसीयत बनते या
बताते समय सभी नज़दीकी और दूर दराज के
रिश्तेदार, जिन में से कइयों से आखरी बार कब
मुलाकात हुई हो याद भी नही होता, वैसे ही
(अभी)नेता, अधिकारी, कॉरपोरेटर, प्यादे, चमचे,
चेले चपाटे, अठन्नी, चवन्नी, छुट्टन हाजरी लगाना
शुरू हो जाते है।
वैसे चुनाव के परिपेक्ष में अमूमन जिसकी वसीयत
होती है (जनता) वो चक्रव्यूह में घिरे अभिमन्यु से कम नही
होते और उनका हश्र भी अभिमन्यु सा मिला जुला ही होता है।
फर्क सिर्फ इतना कि वो अभिमन्यु की तरह शहीद
नही किये जाते, बस निढाल करके कोमा में डाल
दिये जाते है, जो आस पास क्या हो रहा है देख तो सकते है मगर कर कुछ भी नही सकते।
अमूमन 5 सालों बाद ये फिर कोमा से बाहर आते
है (लाये जाते है), वादों, घोषणाओं, उम्मीदों रूपी
एंटीबायोटिक्स से स्वस्थ, तंदुरुस्त किये जाते है
ध्यान रहें, वसियतदार जब तक बागबान रूपी
महानायक बच्चन जैसे कठोर नही बनेंगे तब तक
उनकी अहमियत वसीयत बनने तक ही सीमित
रहेगी ये जानना, समझना, समझाना, सचेत करना
और सचेत रहना समय की पुरजोर जरूरत है
वरना ये कोमा और एंटीबायोटिक्स का चक्रव्यूह
सजता और रचता रहेगा और अभिमन्यु होंगे हम.......
"वसियतदार"!!!!
(The blog writer/Compiler is a Management Professional and operates a Manpower & Property Consultancy Firm. Besides, he is President of "Consumer Justice Council", Secretary of "SARATHI", Member of "Jan Manch", Holds "Palakatva of NMC", Is a Para Legal Volunteer, District Court, Nagpur & Member of Family Welfare Committee formed under the directions of Hon. Supreme Court).
No comments:
Post a Comment