Saturday, September 30, 2017

दुखद/शर्मनाक हादसा...

प्रशासनिक लापरवाही, धृत्रुराष्ट्र राजनेता, चापलूस/चाटुकार मीडिया, असंवेदनशील व्यवस्था, ओछी राजनीति, गुंगे - बहरे - अंधे, हम और आप!

           (अपवादों के लिए आदर और नमन)

हम सभी की (जनता) ये आदत है की हम हमेशा जो समय चल रहा है, उसे आंख मुंद कर चलने ही देते है या उसके बहाव मे बहते जाते है। जबकी हकीकत ये है की हमारा सिर्फ उपयोग होता है...कहीं कम कहीं ज्यादा ये दूसरी बात है। जिम्मेदार भी हम ही है। समय समय पर किसी एक को इतना चढ़ा देते है की हमे ही नही पता होता की हम क्या कर रहें है। नतीजा, हम सालों से अनुभव कर ही रहे है। 

किसी को भी उतना ही सर आँखों पे रखो जितना जरूरी हो और सही हो.. वरना फिर शिकायत करने का अधिकार हम खुद ही खो देते है। 

अति संवेदनशील घटनाओं पर हमारी खामोशी भी हमारे उत्पीड़न का मुख्य कारण है। याद रखें, जिनके घर जले है वो स्वयं भी हमारे घर आंगन के ही है। आग फैलने देरी नहीं लगती। आने वाली लपटों से यदि बचना है, तो उसे बुझाने की कोशिश हमें ही करनी होगी। 

         " जागना होगा, जगाना होगा, चेताना होगा "

याद रखें "रावण को जलाने से पहले हम खुद ही उसे खडा करते है"।

शर्मसार करने वाले हादसों और दुर्घटनाओं से सदियों से पीड़ित जनता को समर्पित...

                        "दुखद-शर्मनाक हादसा"

दुखद हादसा

जनता का ग़ुस्सा

सोशल प्लेटफॉर्म-मीडिया में

सुर्खियों का दौर

आरोप प्रत्यारोप चहुं ओर

सभी ओर प्रोटेस्ट

हादसा लेटेस्ट

कैंडल का मार्च

इस्तीफा दो इंचार्ज

विपक्ष मे रोष

अधिकारी मे होश

उच्च लेवल समीति का गठन

सरकार का खेद-चिंतन-मंथन

मुवावजे का ऐलान

दोषियों को न बक्षने का फरमान

घायलों- परिजनों की वेदना

सरकार-पक्ष-विपक्ष की संवेदना...

कब तक??

जिम्मेदारी की मारी 

जनता बेचारी

लुटती रहेगी

छलती रहेगी

पिसती रहेगी

लड़ती रहेगी

कब तक?

जनता का आक्रोश जैसे ही थमेंगा

मीडिया भी नए हादसों-

नए सुर्खियों में रमेगा

अधिकारी फिर होंगे मदहोश

विपक्ष खोजेगा नया दोष

सरकार खुद को ठेहराएंगी निर्दोष

फिर चुनाव का दौर

वादों, उम्मीदों से जनता भाव विभोर

नई सत्ता, नया पक्ष-विपक्ष

दिक्कतें वही जनता समक्ष

दुखद हादसा..

(ये कविता ब्लॉग के लेखक ने लिखी है। इस पर लेखक का पूर्णाधिकार है। बगैर लेखक के अनुमती के कहीं भी प्रकाशित ना करें।) 

(The blog writer is a Management Professional and operates a Manpower & Property Consultancy Firm. 

Besides, he is -


1) President of "Consumer Justice Council", 
2) Secretary of "SARATHI",  
3) Member of "Jan Manch",  
4) Holds "Palakatva of NMC", 
5) Para Legal Volunteer, District Court,  
6) RTI Activist
7) Core Committee Member of Save Bharat  
     Van Movement & Paryavaran Prerna        
     "Vidarbha"
8) Member of Alert Citizen Group, Nagpur 
     Police, 
9) Member of Family Welfare Committee
    formed under the directions of Hon.     
    Supreme Court.

Twitter: @amitgheda.






Friday, September 22, 2017

अपने विचार रखें..चुप चाप सहने से दीर्घ काल में नुकसान ही होगा

अगर मेंढक को गर्मा गर्म उबलते पानी में डाल दें तो वो छलांग लगा कर बाहर आ जाएगा और उसी मेंढक को अगर सामान्य तापमान पर पानी से भरे बर्तन में रख दें और पानी धीरे धीरे गरम करने लगें तो क्या होगा ?

मेंढक फौरन मर जाएगा ?
जी नहीं....

ऐसा बहुत देर के बाद होगा...
दरअसल होता ये है कि जैसे जैसे पानी का तापमान बढता है, मेढक उस तापमान के हिसाब से अपने शरीर को Adjust करने लगता है।

        पानी का तापमान, खौलने लायक पहुंचने तक, वो ऐसा ही करता रहता है।अपनी पूरी उर्जा वो पानी के तापमान से तालमेल बनाने में खर्च करता रहता है।लेकिन जब पानी खौलने को होता है और वो अपने Boiling Point तक पहुंच जाता है, तब मेढक अपने शरीर को उसके अनुसार समायोजित नहीं कर पाता है, और अब वो पानी से बाहर आने के लिए, छलांग लगाने की कोशिश करता है।

          लेकिन अब ये मुमकिन नहीं है। क्योंकि अपनी छलाँग लगाने की क्षमता के बावजूद , मेंढक ने अपनी सारी ऊर्जा वातावरण के साथ खुद को Adjust करने में खर्च कर दी है।

          अब पानी से बाहर आने के लिए छलांग लगाने की शक्ति, उस में बची ही नहीं I वो पानी से बाहर नहीं आ पायेगा, और मारा जायेगा I

          मेढक क्यों मर जाएगा ?

          कौन मारता है उसको ?

          पानी का तापमान ?

          गरमी ?

          या उसके स्वभाव से ?

          मेढक को मार देती है, उसकी असमर्थता सही वक्त पर ही फैसला न लेने की अयोग्यता । यह तय करने की उसकी अक्षमता कि कब पानी से बाहर आने के लिये छलांग लगा देनी है।

          इसी तरह हम भी अपने वातावरण और लोगो के साथ सामंजस्य बनाए रखने की तब तक कोशिश करते हैं, जब तक की छलांग लगा सकने कि हमारी सारी ताकत खत्म नहीं हो जाती ।

         लोग हमारे तालमेल बनाए रखने की काबिलियत को कमजोरी समझ लेते हैं। वो इसे हमारी आदत और स्वभाव समझते हैं। उन्हें ये भरोसा होता है कि वो कुछ भी करें, हम तो Adjust कर ही लेंगे और वो तापमान बढ़ाते जाते हैं।

            हमारे सारे इंसानी रिश्ते, राजनीतिक और सामाजिक भी, ऐसे ही होते हैं, पानी, तापमान और मेंढक जैसे। ये तय हमे ही करना होता है कि हम जल मे मरें या सही वक्त पर कूद निकलें।

(विचार करें, गलत-गलत होता है, सही-सही, गलत सहने की सामंजस्यता हमारी मौलिकता को ख़त्म कर देती है)

     ये देश किसी चोर, उचक्के या बदमाश के कारण नहीं बुद्धिमानों की चुप्पी की वजह से बर्बाद होता है ।

(The blog writer/compiler is a Management Professional and operates a Manpower & Property Consultancy Firm. 

Besides, he is -

1) President of "Consumer Justice Council", 
2) Secretary of "SARATHI",  
3) Member of "Jan Manch",  
4) Holds "Palakatva of NMC", 
5) Para Legal Volunteer, District Court,  
6) RTI Activist
7) Core Committee Member of Save Bharat  
     Van Movement & Paryavaran Prerna        
     "Vidarbha"
8) Member of Alert Citizen Group, Nagpur 
     Police, 
9) Member of Family Welfare Committee
    formed under the directions of Hon.     
    Supreme Court.

Twitter: @amitgheda.





'BASICS' : Always the SUPREME yardstick

Unless and until the ' BASICS ' are in the right place, all other things would eventually fall into the category of appeasement. App...